Sunday, September 19, 2010
गीता अमृत - 33
कर्म - योग समीकरण - 14
गीता के दो सूत्र ------
[क] गीता सूत्र - 2.48
आसक्ति रहित कर्म समत्व योग में पहुंचाता है ॥
[ख] गीता सूत्र - 5.19
समत्व योगी ब्रह्म में होता है ॥
क्या है आसक्ति और क्या है समत्व योगी ?
आसक्ति, मन की वह ऊर्जा है जो भोग की ओर खीचती है ।
इस बात को थोड़ा सा समझते हैं -------
पांच ज्ञानेन्द्रियों का काम है , अपनें - अपनें बिषयों को खोजते रहना या यों कहें की ........
वह जो गुणों का गुलाम है उसकी इन्द्रियाँ बिषयों से आकर्षित होती रहती हैं और जो इस बात को समझता है ,
वह कर्म - योग में होता है ।
जो अपनें इन्द्रियों का गुलाम नहीं है और इन्द्रिय - बिषय के मिलनें के परिणाम को
समझता है , वह सम भाव योगी हो सकता है यदि उसकी समझ मजबूत हो तो ।
गीता के छोटे - छोटे सूत्रों को अपना मार्ग बनानें वाला ब्यक्ति स्वतः -------
श्री कृष्ण मय हो उठेगा , एक दिन ॥
==== ॐ =====
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