Monday, September 27, 2010
गीता अमृत - 40
कर्म योग समीकरण - 21
आज टाइम्स ऑफ़ इंडिया में माया पर किसी महा पुरुष द्वारा दिए गए संकेतों को देखनें से
ऐसा लगा की लोग बोलते तो हैं गीता के नाम पर पर गीता शब्द मात्र लोगों को आकर्षित
करनें के लिए प्रयोग किया जाताहै , ऐसा मुझे लगता है । यदि भारत सरकार कोई
ऐसी क़ानून पास करदे जो गीता - उपनिषद् पर बोलनें वालों
के मुख को बंद करदे तो मैं समझता हूँ ,
ज्यादा तर आश्रमों का ब्यापार बंद हो जाएगा ।
भारत में गीता और उपनिषद् - दो ऐसे रत्न हैं जिनको समझनें के लिए सम्पूर्ण दुनिया से
लोग यहाँ आये लेकीन उनको मिला क्या , गीता - उपनिषद् के नाम पर लोगों की
अपनी बनाई कथाएं ?
आप यहाँ गीता के कुछ सूत्रों को देखें जो माया से सम्बंधित हैं
और जिनमें मेरा योग दान कुछ नहीं है ।
मैं चाहता हूँ , गीता आप से बोले और मैं श्रोता बना रहूँ ,
जब कोई प्रभु की बात को नहीं समझ सकता
तो मेरी बात को क्या समझेगा ?
[क] गीता - 8.40
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में गुणों से अप्रभावित कुछ नहीं है , सिवाय प्रभु के ॥
[ख] गीता - 7.14
तीन गुणों से निर्मित माया को समझना आसान नहीं ॥
[ग] गीता - 7.12
माया [ गुणों से निर्मित एक सूक्ष्म माध्यम ] प्रभु से है लेकीन प्रभु मायातीत - गुनातीत है ॥
[घ] गीता - 7.13,7.15
माया में जिसको रस मिलता है वह मायापति से दूर रहता है , ऐसे आसुरी प्रकृति के लोग होते हैं , उनके जीवन का केंद्र , भोग होता है ॥
[च] गीता - 14.26
अखंडित भक्ति से माया से बाहर निकला योगी ब्रह्म स्तर का होता है ॥
प्रभु की बातें ऎसी हैं जैसे साफ़ स्थिर झील के पानी पर पूर्णिमा का चाँद खिला हो ,
क्यों भागते हो इधर - उधर ,
बैठो इस चाँद के पास और देखो इसमें प्रभु को , दो घडी , क्या गीता के यहाँ दिए गए
सूत्रों से अधिक स्पष्ट बातें
कहीं और मिलेंगी जो .......
माया के रहस्य को स्पष्ट कर सकें ?
===== ॐ ======
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