Monday, September 13, 2010

गीता अमृत - 27

कर्म - योग समीकरण - 08

पहले गीता के तीन सूत्र .......

[क] सूत्र - 18.20
कामना रहित कर्म ही कर्म संन्यास है -----

[ख] सूत्र - 2.51
कर्म फल की कामना जिस कर्म में न हो , वह कर्म मुक्ति का मार्ग होता है ------

[ग] सूत्र -4.19

कामना - संकल्प रहित ब्यक्ति ग्यानी होता है --------

गीता में प्रभु अर्जुन से क्या कह रहे हैं ?
कामना , कर्म फल की चाह [ यह भी एक कामना ही है ] और संकल्प रहित कर्म , ग्यानी , सन्यासी बनाता है
एवं यह कर्म मुक्ति पथ है । क्या इस से भी स्पष्ट कोई बात हो सकती है ?

अब ज़रा सोचिये -- जहां दो सेनायें आमने - सामनें खडी हों , चारों ओर युद्ध के बाद्य बज रहे हों , वहाँ, जहां
युद्ध किसी भी वक्त प्रारम्भ होनें की उम्मीद हो , ऎसी परिस्थिति में इतनी गंभीर बात की ---
कामना रहित हो कर इस युद्ध में भाग लो और तब देख की क्या होता है ? ऎसी बात प्रभु श्री कृष्ण जैसा
योगी राज ही कर सकता है ।

मन में कोई हार - जीत का भाव न आनें पाए , जब तक युद्ध हो रहा हो , यह क्या एक साधना नहीं तो
और क्या है ?
युद्ध को साधना बनाना क्या किसी सामान्य ब्यक्ति की सोच हो सकती है ?
क्या अर्जुन कामना रहित हो कर कुरुक्षेत्र के धर्म क्षेत्र में अपने अस्त्र - सस्त्र के साथ गए हुए हैं ?
साधना कठिन ही होती है , यहाँ प्रभु के बचनों से आप समझ सकते हैं , साधना की गंभीरता ।
यदि साधना मंदिर में जा कर दो रुपये का प्रसाद चढा कर पूरी होती हो तो भारत का हर ब्यक्ति
महाबीर - बुद्ध होता ।
प्रभु के कर्म - योग को समझना और समझ कर उस मार्ग पर चलना किस प्रकार का
हो सकता है ,
इस बात को आप स्वयं समझें ॥

===== ओम ======

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