Friday, September 17, 2010

गीता अमृत - 31

कर्म योग समीकरण - 12

देखते हैं यहाँ गीता के तीन सूत्रों को -------

[क] सूत्र - 5.3
सूत्र कहता है .... घृणा , कामना एव द्वन्द रहित सभी बंधनों से मुक्त , संन्यासी होता है ॥
[ख] सूत्र - 5.5
यहाँ प्रभु अर्जुन से कहते हैं ...... अर्जुन ! सांख्य - योग एवं अन्य योगों का परिणाम एक होता है ॥
[ग] सूत्र - 4.38
यहाँ प्रभु कहते हैं ..... सभी योगों का फल , ज्ञान है ॥
गीता के तीन सूत्र सत गुरु की भाँती हमारे साथ हैं , यहाँ मन - बुद्धि क्या संदेह उठा सकते हैं , सब कुछ
तो दर्पण की तरह साफ़ है ।

सीधी सी गणित है --- बिषयों को समझो , इन्द्रियों को समझो , इनके चाल पर निगाह रखो - ऐसा करनें से
मन स्थिर होगा , मन स्थिर होनें से बुद्धि संदेह रहित होगी और जब यह स्थिति आती है तब ......
वह ब्यक्ति प्रभु की ओर चल पड़ता है , बिना कुछ सोचे - समझे , इस स्थिति को कह सकते हैं -----
निष्काम यात्रा । यात्रा कर्म के माध्यम से हो तो अति सरल क्यों की कर्म बिना कोई होता ही नहीं तो
क्यों न कर्म के ही माध्यम से सत की ओर चलें ॥

=== ॐ ====

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