Monday, September 27, 2010

गीता अमृत - 39

कर्म-योग समीकरण - 20

गीता के माध्यम से प्रभु अर्जुन से कहते हैं :-------
अर्जुन ! राजस गुण के साथ प्रभु की भक्ति संभव नही ...... गीता सूत्र - 6.27
अर्जुन तो मोह में हैं , फिर प्रभु ऎसी बात क्यों कह रहे हैं ?
इस बात पर हम देखते हैं , बाद में अभी गीता का एक और श्लोक देख लेते हैं :----------
यहाँ प्रभु गीता प्रारम्भ में कहते हैं ........
अर्जुन बैरागी बननें की बात तो तूं कर न , क्यों की तामस गुण के तत्त्व मोह के साथ बैरागी होना
असंभव है -- गीता सूत्र - 2.52
अब गीता के दो सूत्रों को एक साथ देखते हैं ......
गीता सूत्र - 14.7, 14.12
यहाँ प्रभु कहते हैं :-------
कामना , लोभ , राग राजस गुण के तत्त्व हैं और सूत्र -3.37 में कहते हैं , काम का रूपांतरण क्रोध है और काम
राजस गुण का केंद्र है ।

गीता जैसे है वैसे एक - एक श्लोक पर बोलना बहुत सीधा है ,
लोग जैसे चाहते हैं गीता के श्लोकों को
तोड़ - मडोर लेते हैं
लेकीन गीता के सभी श्लोकों को, एक बिषय से सम्बंधित जो हैं ,एकत्र करके
कुछ ध्यान की बात को निकालना , अति कठिन है ।
अब आप एक और उदाहरण देखें :-----
अध्याय तीन में कर्म और ज्ञान की बातें हैं जब की कर्म की परिभाषा अध्याय आठ के प्रारम्भ में है और
ज्ञान की परिभाषा अध्याय तेरह के प्रारम्भ में है ।

गीता को पढ़ना अति आसान .........
गीता के श्लोकों पर प्रवचन देना अति आसान ........
लेकीन गीता को अपनें ध्यान का बिषय बनाना अति कठिन ॥

====== ॐ ======

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