Wednesday, April 14, 2010

नानक वाणी - 1

मृत्यु का अज्ञान , मृत्यु को भयावह बनाता है
[ Death is not painful for those who understand it . ]

आदि गुरु नानकजी साहिब कहते हैं - उनके लिए मृत्यु भय का साकार रूप नहीं है जो मृत्यु को समझते हैं
मृत्यु की समझ क्या है ? बुद्ध कहते हैं - मृत्यु से मैत्री स्थापित करो ,नानकजी साहिब
कहते हैं - मृत्यु उनके लिए भय का माध्यम नहीं जो इसके राज को जानते हैं और गीता में मृत्यु शब्द मात्र कुछ बिशेष परिस्थितिओं में प्रयोग किया गया है जबकि गीता मृत्यु का बिज्ञान देता है ।
गीता श्लोक 8.12 - 8.13 में प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन को मृत्यु - ध्यान बताते हुए कहते हैं - मन - बुद्धि को
निर्विचार स्थिति में रख कर , ध्वनिरहित स्थिति में ॐ का स्मरण करता हुआ , प्राण को ह्रदय से उठा कर तीसरी आँख पर केन्द्रित करके जो अपना प्राण त्यागता है , वह परम गति को प्राप्त करता है ।
योगी मुश्कुराते हुए अपना प्राण होश में स्वयं छोड़ता है और भोगी मौत से संघर्ष करते हुए बेहोशी में मृत्यु को प्राप्त करता है ।
भोगी जीवन भर अमरत्व की दवा खोजता रहता है और अपने इस खोज में
एक दिन पूर्ण बेहोशी में मौत के मुह में पहुँच जाता है ।
योगी मौत को प्रकृति का एक परम सत्य
समझता है , उसकी यह सोच जब गहरी हो जाती है तब उसकी मित्रता , मौत से हो जाती है और वह योगी स्वेच्छा से अपना शरीर छोड़ देता है , जब वह देखता है की अब इस शरीर को ले कर चलना
कठिन हो रहा है ।

मृत्यु पीड़ा से परिपूर्ण क्यों है ?

गीता अप्रत्यक्ष रूपमें मौत का विज्ञान देता है - कैसे , देखते हैं , यहाँ ।
गीता कहता है - जबतक कोई गुनातीत नहीं हो जाता तब तक वह प्रभु मय नहीं हो सकता और उसे
परम गति नहीं मिल सकती । गीता यह भी कहता है - गुनातीत केवल प्रभु है । गीता आगे कहता है -
आत्मा को देह में तीन गुण रोक कर रखते हैं [ गीता - 14.5 ], अर्थात जब मनुष्य गुनातीत हो जाता है तब
उसका आत्मा उसके देह में बंधन मुक्त हो जाता है । आत्मा जब बंधन मुक्त हो जाता है तब वह ब्यक्ति
तीन सप्ताह से अधिक दिनों तक अपनें देह के साथ नहीं रह सकता - ऐसी बात परम हंस श्री राम कृष्ण जी
कहते हैं - परम हंस जी कहते हैं - मायामुक्त योगी देह में तीन सप्ताह से अधिक दिनों तक नहीं रह सकता ।

आप ज़रा इन बातों पर सोचना ....

** कौन जीना चाहता है और कब तक जीना चाहता है ?
** कौन जीना नहीं चाहता ?
जीवन में जिसके अहंकार पर गहरे चोट लगे हों , वह नहीं जीना चाहता ।
भोगी ब्यक्ति भोग की असफलता पर मृत्यु को गले लगाना चाहता है ।
गीता कहता है - काम - कामना में बिघ्न आनें पर क्रोध पैदा होता है जो पाप का कारण होता है ।
[ गीता -2 .62 - 2.63 ]

===== अकाल मूरत ======

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