Friday, April 2, 2010

श्री ग्रन्थ साहिब जी एवं गीता - 19 - 20

जपजी साहिब मूल मंत्र - चरण .... 11 - 12

आदि सतु , जुगादि सतु
[In the beginning , there was truth and time cycle is also truth ]

[क] बाइबल में संत जोसेफ कहते हैं - प्रारम्भ में शब्द था , शब्द प्रभु के साथ था और शब्द ही प्रभु था ।
[ख] गीता कहता है - अक्षरं ब्रह्म परमं ..... गीता श्लोकांश - 8.3
[ग] वेदों में कहा गया है - The universe goes through repeated 432000 earth year cycle of
creation and destruction .
[घ] गीता कहता है [ गीता श्लोक - 8.16 - 8.20 तक ] -- सभी लोक पुनरावर्ती हैं अर्थात आज हैं कल न होंगे लेकीन इसका अर्थ यह नहीं की इनका अस्तित्व न होगा , ये कहीं न कहीं होंगे ।
ब्रह्मा का दिन और रात बराबर समय के होते हैं , रात में कुछ नहीं होता मात्र एक परम शून्यता होती है ।
ब्रह्मा के दिन में ब्रह्माण्ड सूचनाओं से भरा होता है , जो हैं वे समाप्त होते रहते हैं और उनकी जगह नए -नए आते रहते हैं । ब्रह्मा के दिन की अवधी चार युगों की अवधी से हजार गुना बड़ी होती है । जब ब्रह्मा का दिन समाप्त होता है , रात का आगमन होता है तब सभी सूचनाएं शूक्ष्म ब्रह्मा में एक ऊर्जा के रूप में समा जाती हैं ।
उनह जब दिन का आना होता है तब साभी सूचनाएं अपनें - अपनें पुर्बवत रूपों में
आ जाती हैं । गीता आगे कहता है - इन सब के भी परे अब्यक्त भाव है जिसको परम ब्रह्म कहते हैं वह अपरिवर्तनीय है , सनातन है और जो उसमें चला गया वह आवागमन से मुक्त हो जाता है ।

विज्ञान कहता है -----
अबसे लगभग 14 billion years पहले 100 million light years क्षेत्र फल का एक hydrogen atom ऊपर आकाश में कही फटा और जिसके परिणाम से टाइम स्पेस का निर्माण हुआ और तब से आज तक ब्रह्माण्ड फ़ैल
रहा है । Prof. Albert Einstein कहते हैं - ब्रह्माण्ड में कोई अज्ञात ऊर्जा ऎसी है जो सभी सूचनाओं को एक दूसरे से दूर भगा रही है और हो सकता है यही ऊर्जा ब्रह्माण्ड के अंत का कारण बनें । विज्ञान कहता है --
जैसे Big bang से ब्रह्माण्ड की रचना हुई है ठीक उसी तरह big crunch की घटना से ब्रह्माण्ड का अंत भी
संभव है ।

वह जो Big bang से पूर्व था वह जपजी के मूल मंत्र का आदि सतु है और जो big crunch के बाद भी रहेगा
वह जपजी साहिब के मूल मंत्र का जुगादि सतु है और वही गीता का अब्यक्त अक्षर है ।
सतु क्या है ?

एक ओंकार सतु है .....
सत नाम सतु है ....
करता पुरुष सतु है ....
अजुनी सतु है .....
और वह सतु है जो मिलता है - जपजी के सुमिरन से लेकीन जो अब्याक्तातीत है ।
गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं -----
असत के बिना कोई सत नहीं [ गीता - 18।40 ],
सत भावातीत है [ गीता - 2.16 ]
अतः असत जिसका हमें अनुभव है उसके माध्यम से प्रभु पर अपनी ऊर्जा केन्द्रित करके सत में पहुंचनें का अभ्यास करते रहना चाहिए । क्राइस्ट कहते हैं - चौबीस घडी इंतज़ार करो , प्रभु बश प्रवेश करनें वाला ही है ।

==== एक ओंकार सत नाम ====

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