Wednesday, April 28, 2010
जपजी साहिब - 9
सुणिए ईसरु बरमा इंदु .......
सुणिए मुखि सालाहण मंदु ...
सुणिए जोग जुगति तनि भेद ...
सुणिए सासत सिम्रिति वेद .....
नानक भगता सदा विगासु .....
सुणिए दुःख पाप का नासु .......
आदि गुरु श्री नानकजी साहिब जपजी में कहते हैं ------
प्रभू - परमेश्वर के गुण गान के श्रवन करनें से .......
शिव ब्रह्मा एवं इन्द्र का ज्ञान होता है ....
निर्विकार ऊर्जा का संचालन होता है .....
जोग - जुगति का पता चलता है .....
शास्त्र , वेदों का ज्ञान होता है .....
स्मृति निर्मल होती है ....
साधू पुरुष आनंदित होते हैं .....
दुःख - पाप का अंत होता है ॥
एक परम भक्त , एक फकीर और क्या कह सकता है ?
इस बात पर आप सोचना , अब हम आगे गीता के कुछ सूत्रों को देखते हैं ----
गीता कहता है .....
प्रभु पर केन्द्रित वह हो सकता है जो -----
[क] अपनें इन्द्रियों को कछुए की भाँतीनियंत्रण में रखता हो - गीता .... 2.58
[ख] यह जानता हो की बिषयों में छिपे राग - द्वेष इंदियों को सम्मोहित
करते हैं - गीता ... 2.64
[ग] यह समझता है की बिषयों में राग - द्वेष होते हैं - गीता ... 3.34
[घ] यह जानता है की करता भाव , अहंकार की छाया है - गीता ... 3.27
[च] अपनें बुद्धि को परम पर स्थीर रखनें में सक्षम हो - गीता .... 2.55 - 2.72 तक ॥
भक्त जैसे - जैसे आगे चलता जाता है वैसे वैसे वह रिक्त होता जाता है ; न उसके पास शब्द रह पाते हैं और न ही बुद्धि में तर्क - वितर्क करनें की क्षमता । परा भक्त अपनें भावों को जो भाव रहित भाव होते हैं , आंशुओं की
बूंदों के रूप में प्रभु को अर्पित करता है ।
कबीर साहिब , नानकजी साहिब और परम हंस श्री राम कृष्ण जैसे परम प्रिमियों को कितनें लोग पहचानते हैं और कितनें लोग उनके संग होते हैं ?
परम संतों के साथ चलनें वाले न के बराबर होते हैं लेकीन जो उनके संग नहीं रहते वे उनके जानें के बाद उनकी प्रतिमाएं बनवाते हैं ।
इशू के साथ कितनें लोग थे ? इशू को किसनें बेचा ? और क्रोस पर लटके इशू की प्रतिमा को लोगों के गले में कौन लटकाया और क्यों लटकाया ?
परम भक्तो को मार कर उनकी प्रतिमाएं बना कर उनकी प्रतिमाओं के पूजन की प्रथाएं चलाते हैं वे जो उनके
बिरोधी होते हैं ।
==== एक ओंकार सत नाम ====
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