सत गुरुओं की भाषाएं अलग - अलग होती है पर ..........
आदि गुरु नानकजी साहिब एवं कबीरजी साहिब भारत भूमि पर लगभग 50 बर्षों तक [ 1469 - 1518 तक ] एक साथ रहे ; एक विद्या की राजधानी काशी में बुद्धि जीविओं के मध्य अपनें सीमित शब्दों के आधार पर वेदान्त की लहर फैला रहे थे और दूसरे - नानकजी साहिब , पीर - फकीरों की धरती - पंजाब में थे ।
नानकजी साहिब परम ज्ञान प्राप्ति के बाद रुक न पाए , पंजाब से जेरुसलेम तक भागते रहे , लोगों को अपना अनुभव
देना चाहते थे , लेकीन लेनें वाले कहाँ हैं ?
नानकजी साहिब एवं कबीरजी साहिब में काफी समानताएं हैं । नानकजी साहिब एवं कबीरजी साहिब भक्त थे , जो बोलते थे वह उनके ह्रदय से निकलता था , उनके पास सीमित शब्द थे , लेकीन परम भाव असीम था । नानकजी साहिब के बड़े बेटे - श्री चन्दजी महान भक्त थे जिन्होंने उदासी परम्परा चलाया और यह पंथ पंजाब में धार्मिक स्थानों की देख - रेख करता रहा । नानकजी साहिब श्री चन्द जी को समझते थे लेकीन अपनें बाद गुरु बनाया , अंगद जी साहिब को ।
कबीरजी का बेटा कमाल जो संभवतः कबीरजी साहिब से कुछ कम न था अपनें अल्प समय में जो कुछ भी बोला है , उनमें एक रस वेदान्त
भरा पडा है ।
सत गुरुओं की भाषाएँ अलग - अलग होती हैं , अलग - अलग स्थानों पर अलग - अलग लोगों के मध्य होते हैं लेकीन उनके भाव एक होते हैं । सत गुरु बाटना चाहता है , वह देना चाहता है , वह प्यार करता है , वह सब को अपना ही समझता है , वह सब में प्रभु को देखता है लेकीन हम आप -----
उनकी एक नहीं सुनते ... हाँ एक बात है , उनके जानें के बाद हम उनकी पूजा प्रारम्भ कर देते हैं ।
सत गुरु पंथ का निर्माण नहीं करते ,
सत गुरु के जानें के बाद
बुद्धिजीवी लोग पंथ का निर्माण करते हैं ।
===== एक ओंकार सत नाम =======
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