Tuesday, April 20, 2010

नानक वाणी - 4

आदि गुरु नानकजी कहते हैं ........

वह तर्कातीत है

आदि गुरु के वेदान्त को समझनें के लिए आप देखें गीता के निम्न सूत्रों को ---------
2.16, 2.41 - 2.66, 7.10, 7.20, 7.24, 8.3,8.20, 8.22, 18.29 - 18.35, 18.72 - 18.73

आदि गुरु जो बात कह रहे हैं उस बात को हजारों वर्ष पूर्व उपनिषद् एवं गीता कह चुके हैं ।
एक बात हमें समझनी चाहिए की .......
श्रद्धा में प्रभु बसते हैं और संदेह से विज्ञान निकलता है । जितना गहरा संदेह होगा , उतना गहरा विज्ञान निकलनें की संभावना होती है । विज्ञान एवं धर्म के मार्ग एक दुसरे के बिपरीत दिशा में चलते हैं ।

गुणों के आधार पर तीन प्रकार के लोग हैं और उनकी अपनी - अपनी बुद्धि हैं । राजस एवं तामस गुणों वालों की बुद्धि अनिश्चयात्मिका बुद्धि होतीहै जो संदेह से परिपूर्ण होती है और सात्विक गुण वाले की बुद्धि , निश्चयात्मिका बुद्धि होती है जिसमें संदेह के लिए कोई जगह नहीं होती ।
गीता कहता है ......
## भोग - भगवान् को एक साथ एक बुद्धि में रखना संभव नहीं - गीता - 2.42 - 2.44 तक
## ब्रह्म की अनुभूति मन - बुद्धि के परे की है - गीता - 12.3 - 12.4
## वह भावातीत है - गीता - 8.20 - 8.22 तक
## सत भावातीत है - गीता - 2.16
## भोग बंधनों से अप्रभावित कर्म , गीता के कर्म हैं जो भावातीत की
स्थिति में पहुंचाते हैं - गीता - 8.3

आदि गुरु श्री नानकजी साहिब जो बात कह रहे हैं की --- वह तर्कातीत है , उस बात की बुद्धि स्तर पर समझनें की पूरी गणित तत्त्व - विज्ञान के रूप में देता है , जिसके कुछ अंश को ऊपर दिखाया गया है ।
संतों की भाषा अलग - अलग हो सकती हैं लेकीन उन भाषाओं से जो
रस टपकता है ,
वह एक ही होता है ।

==== एक ओंकार सत नाम =====

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