Monday, April 26, 2010

जपजी साहिब - 7


नानक निरगुणि गुणु करे ......
गुणवन्तिआ गुणु दे .....
तेहा कोई न सुझई ....
जि तिसु गुणु कोई करे ॥

गुण रहित को गुनी बनाए .....
गुनी में और गुण बहाए ......
ऐसे का गुण कौन गाये ....
तेरे जैसा कोई और न भाये ॥

आदि गुरु नानकजी साहिब जपजी के माध्यम से कहते हैं .......
मैं तेरा गुण क्या गाऊ , किससे गाऊ , और कैसे गाऊ ...
तू तो सीमा रहित सनातन , सभी गुणों का आधार स्वतः निर्गुणी हो .....
मैं तेरे को कैसे गाऊ ॥

दो तरह के लोग मिलते हैं ; एक भक्त होते हैं जो कटी पतंग की तरह अन जानें गणित के सूत्र के अनुकूल प्रभु में उड़ते रहते हैं और दूसरे हैं - ध्यानी , जो एक - एक कदम बुद्धि के सहयोग से चलते हैं और जब तक उसे पा नहीं लेते , मुसकुरा नहीं पाते ।
भक्त प्रभु को अपनें से बाहर देखता है , धीरे - धीरे उसकी ओर कदम भरता है और ध्यानी निराकार प्रभु को ऊर्जा के रूप में स्वयं में तलाशता है । भक्त की यात्रा भार रहित कणों की तरह होती है जिसकी गणित बाउनियन सिद्धांत एवम आइस्ताइन की गणित के अनुसार होती है पर ध्यानी की यात्रा न्यूटन की गणित की तरह चलती है -- आप इस बात पर गहराई से सोचना यदि आप विज्ञान के विद्यार्थी रहे हों ।
कबीरजी साहिब कहते हैं ----
[क] बूँद समानी समुद्र मह ....
[ख] समुद्र समानी बूँद मह .....
कबीरजी साहिब नानकजी साहिब की तरह भक्त थे । भक्त जब तक अपरा भक्ती में रहता है तब तक वह गाता है ------ बूँद समानी समुद्र मह और जब वह परा भक्ति में पहुंचता है ,
तब गाता है ------
समुद्र समानी बूंद मह -- बस इसके आगे कुछ कहा नहीं जा सकता ।
भक्त की बाहर की खोज उसे तन से दुखी बनाती है लेकीन भक्त कभी नही समझता की वह दुखी है । लोग कहते हैं की ... बिचारा / बिचारी कितना दुखी है / कितनी दुखी है ।

भक्त तन से मन को नियोजित करके प्रभु को प्राप्त करके धन्य हो उठता है
और ----
ध्यानी बुद्धि को नियोजित करके मन - बुद्धि से परे की स्थिति में प्रभु को देखता है ।
कबीरजी साहिब समाधी को सुरती कहते थे ; सुरती वह स्थिति है जो प्रभु के
गुणगान में तन , मन एवं बुद्धि हैं की सोच जब समाप्त हो जाती है तब आती है ,
जिसको ध्यान की भाषा में समाधि कहतेहैं ।
भक्त की कोई सीधी भाषा नहीं होती , हम - आप के लिए , लेकीन वे अपनी भाषा
से संतुष्ट होते हैं ।
भक्त चक्रवात में जीता है और ...
ध्यानी अपनें में चक्रवात को देखता हुआ खुश रहता है ।

=== एक ओंकार सत नाम =====

No comments:

Post a Comment

Followers