नानकजी साहिब कहते हैं ........
परम प्रीति में डूबी एक चीटी का कद उचा है , एक सम्राट के कद से ।
जेसस क्राइष्ट कहते हैं ........
सूई के छिद्र से ऊँट निकल सकता है लेकीन धनवान प्रभु के राज्य में प्रवेश नहीं पा सकता ।
आदि गुरु श्री नानकजी साहिब एवं जेसस एक ही बात को दो अलग - अलग ढंग से कह रहे हैं ; सम्राट एवं धनवान एक ही ब्यक्ति के दो नाम हैं । बुद्ध एवं महाबीर सम्राट थे , बोधी धर्म , सम्राट थे , चन्द्र गुप्त मौर्या भारत के सम्राट थे लेकीन अंत में जैन मोंक बनगए थे और चन्द्र गुप्त मौर्या के पौत्र , अशोक महान अपनें अंत समय में बुद्ध - भिक्षुक बन गए थे , यदि आदि गुरु नानकजी साहिब एवं जेसस की बात सही है तो फिर
ऊपर बताये गए सम्राट प्रभु के राज्य में प्रवेश कैसे पा गए ?
गीता कहता है - दो प्रकार के लोग हैं ; एक वे हैं जिनका केंद्र प्रभु होता है और दूसरे वे हैं , जिनका केंद्र भोग होता है । एक ब्यक्ति एक समय में योगी - भोगी , दोनों नहीं हो सकता , या वह योगी होगा या फिर भोगी ।
योग - भोग , दो समानांतर मार्ग हैं जो कहीं मिलते नहीं हैं लेकीन योग का प्रारम्भ , भोग से हो सकता है ।
भोग एक बंधन है और योग बंधन मुक्त का नाम है । जब तक गुण तत्वों की पकड़ है तब तक वह ब्यक्ति योग में रूचि नहीं रख सकता , वह प्रभु को भी भोग - माध्यम के रूप में प्रयोग कर सकता है लेकीन जिस पल योग की हवा उसे लगती है , वह ब्यक्ति भोग को भी प्रभु को समर्पित कर देता है ।
आदि गुरु नानक जी कहते हैं ..... गुण तत्वों का जो गुलाम है वह सम्राट हो नहीं सकता , वह तो गुलाम ही रहेगा और जो परम प्रीति में डूबा है वह प्रभु का गुलाम है और किसी का गुलाम हो कैसे सकता है ?
===== एक ओंकार सत नाम ========
Sunday, April 18, 2010
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