Friday, April 9, 2010

श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी एवं गीता - 25

जपजी मूलमंत्र का पुजारी कौन है ?

यह मेरा , वह तेरा , यह मित्र , वह शत्रु , यह सुख , वह दुःख , यह अमीर , वह गरीब -- यह भाषा है , उनकी जो भोगी हैं । भोगी वह है जो हमेशा द्वत्य में रहता है , द्वन्द के बिना उसका जीना कठिन हो जाता है ।
गीता श्लोक - 16.8 - 16.22 तक में कुछ अहम् पहलू देये गए हैं - जो भोगी के जीवन के प्रतिबिम्ब हैं , आप इन्हें जरुर समझें । भोगी ब्यक्ति हर पर भोग के चारों तरफ चक्कर काटता रहता है और इस चक्कर में जीवन सरकता चला जाता है । जपजी साहिब का मूलमंत्र उनके लिए है जो परमं प्रीति में डूब रहे हैं , जिनके पास हाँ ही हाँ है , जो ना की भाषा जानते ही नहीं । एक भजन है शायद आप उसे सुनें भी हों ---
ऐसी लागी लगन , मीरा हो गयी मगन ...... जपजी का मूल मंत्र मीरा जैसे भक्त के लिए है , उनके लिए नहीं है जो
संदेह में जीते हैं और संदेह ही जिनका प्राण है ।

गुरुवार रविन्द्र नाथ जी की एक कबिता है जिसमें एक प्रेमी अपनें प्रेमिका से मिलनें आता है , द्वार
खटखटाता है , अन्दर से आवाज आती है - कौन ? प्रेमी कहता है - मैं हूँ , प्रेमिका कहती है - यहाँ दो के लिए जगह नहीं है , प्रेमी चुपचाप चला जाता है । कुछ महीनें गुजर गए , एक दिन प्रेमी पुनः आवाज लगाया , अन्दर से आवाज आयी - कौन ? प्रेमी बोला - अब तो तूं ही तूं है , अन्दर से प्रेमिका बोली , आजा , कौन रोकता
है ?

भक्त और भगवान् का रिश्ता प्रेमी एवं प्रेमिका के रिश्ते जैसा होता है , दोनों जब लड़ते हैं तब भी प्यार की बूंदे टपकती हैं और जब दोनों प्यार में हों , तब के आलम को ब्यक्त करना कठिन सा है ।
मूल मंत्र का कोई अर्थ नहीं , मन्त्रों का कोई अर्थ होता भी नही , मंत्र तो एक विशेष प्रकार की लहर पैदा
करते हैं जिनसे मुर्दा ज़िंदा जो जाता है और ज़िंदा मुर्दा भी हो सकता है । बीसवीं शताब्दी में अंग्रेज
डाक्टरों के सामनें काशी में स्वामी विशुद्धानंद जी एक मंदिर में कुछ गिलहरियों के ऊपर वैदिक मन्त्रों के
प्रभाव के सम्बन्ध में एक प्रयोग किया था । पहले मन्त्रों से उपजी धुन को सुनकर गिलहरियाँ मर गयी , उनके मरनें का परिणाम डाक्टरों नें घोषित किया था । वे जब मन्त्रों को बदल दिए अर्थात कोई और मंत्र बोलनें लगे तब मरी हुई गिलहरियाँ पुनः जीवित हो उठी और भाग गयी ।
मन्त्रों के साथ खेलना , खतरनाक भी हो सकता है , मन्त्रों में सिद्ध गुरुओं की ऊर्जा होती है , इनका कोई अर्थ नहीं होता । आप ज़रा सोचो - युरेनिंयम का अर्थ क्या हो सकता है जिसके अन्दर इतनी ऊर्जा है की कुछ ग्राम मात्रा एक देश को समाप्त कर सकता है , और एक ग्राम से एक गाँव को बिजली सात दिनों तक मिल सकती है ।
मन्त्रों का जाप परम प्रीति में डूबे भक्तों के लिए है , जिनके लिए प्रभु ही सब कुछ है ।

===== एक ओंकार सत नाम ====

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