Saturday, April 24, 2010

जपजी - 5

गुरमुखि नादं गुरमुखि वेदं
गुरमुखि रहिआ समाई
गुरु ईसरु गुरु गोरखु वरमा
गुरु पारबती माई ॥



आदि गुरु श्री नानकजी साहिब जपजी के माध्यम से कहते हैं ------

गुरु मुख में नाद है .....
गुरु मुख में वेदों का रहस्य है .....
गुरु मुख में ही सब समाया हुआ है .....
गुरु ईश्वर है .....
गुरु शिव है .......
गुरु ब्रह्मा है ....
गुरु विष्णु है ...
और गुरु ही माँ पारवती है ।



आदि गुरु का गुरु क्या है ? इस रहस्य के सम्बन्ध में कुछ बातें आप गुरु के मुख से सुनी अब सोचिये की आदि गुरु का गुरु कौन है ?

गीता में अध्याय - 15 में श्लोक - 1 - 3 तक में प्रभु कृष्ण संसार के बारे में स्पष्ट करते हुए कहते हैं .....

संसार एक उर्धमूल पीपल के पेड़ जैसा है , जिसकी जड़ें ऊपर प्रभु में हैं और अन्य भाग नीचे लटक रहे हैं । संसार पेड़ में वेदों के रूप में हैं इसके पत्ते , तीन गुण , पानी के रूप में इसमें बहते रहते है और तीन गुणों के तत्त्व - काम , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , अहंकार इसकी जड़ों के रूप में तीनों लोकों में फैली हुई हैं । अब आप सोचिये की आदि गुरु कहते हैं - गुरुके मुख में वेदों का रहस्य है और गीता कहता है --उर्ध मूल पीपल पेड़ रूपी संसार के पत्तों में है , वेदों का रहस्य । वेदों का आत्मा है , एक ओंकार और जपजी साहीब का प्रारम्भ आदि गुरु जी एक ओंकार , सत नाम से करते हैं ।
एक ओंकार क्या है ? एक ओंकार ॐ है , ॐ एक धुन है जिसको धुनों की धुन परम धुन कह सकते हैं जो विज्ञान के टाइम स्पेस के होनें का रहस्यात्मक ध्वनि है । पीपल के पत्तों की एक विशेषता यह है की ये पत्ते बिना हवा भी नाचते रहते हैं और दिन रात लोगो के हित में आक्सीजन छोड़ते रहते हैं ।
पीपल के पत्ते और वेदों में काफी समानताएं भी हैं । आप कभी पीपल पेड़ के नीचे बैठ कर ॐ का सुमिरन करें । जब आप का ध्यान गहारायेगा तब आप को पत्तों से निकलते ॐ की धुन मिलेगी जो आप के ॐ धुन से मिल कर आप को एक परम अनुभूति में पहुंचा सकती है ।

गीता में श्री कृष्ण कहते हैं -----

शिव मैं हूँ - गीता - 10.23
विष्णु मैं हूँ - गीता - 10.21
ऋग्वेद , सामवेद , यजुर्वेद एवं ॐ - ओंकार मैं हूँ ।

गीता के श्री कृष्ण वह हैं जो आदि गुरु के गुरु हैं , अब आप सोचिये की आदि गुरु के गुरु शब्द का क्या भाव हो सकता है ?



==== एक ओंकार सत नाम ====

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