Saturday, April 3, 2010

श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी एवं गीता - 21

जपजी साहिब मूलमंत्र सोपान - 13


है भी सच [ god is , it is true ]


जपजी साहिब का सफ़र कुछ इस प्रकार का रहा -----
एक ओंकार , सत नाम
करता पुरुष
निर्भैय , निर्बैय
अकाल मूरत , अजुनी , सैभंग

यहाँ जो भी ऊपर बताया गया है , वह एक अनुभूति है , यह अनुभूति कैसे मिले ? इस सम्बन्ध में आदि गुरु श्री नानक जी साहिब कहते हैं ------
इस अनुभूति का ही नाम है - गुरु प्रसाद, जो संभव है, निरंतर प्रभु के नाम के जप करनें से ।
गुरु प्रसाद मिलता हैं उनको जो परम प्रीति में डूबे हों , परम प्यार में बसते हों और जग के कण - कण में जिनको परम गुरु , परमेश्वर की आवाज सुनाई पड़ती हो । जब परम प्यार की हवा लगती है तब यह मह्शूश होनें लगता है - आदि सच , जुगादी सच , है भी सच और हो सी भी सच - आदि गुरु की यह वाणी यह बता रही है की परम प्यार में डूबे भक्त की बुद्धि स्थीर होती है जहां संदेह की कोई गुंजाइश नही होती ।

जो बात आदि गुरु कह रहे हैं वही बात कहते हैं -----

** आदि गुरु शंकराचार्य .... ब्रह्म सत्यम जगद मिथ्या
** औलिया मंसूर ............. अनल हक़
** औलिया सरमद .......... ला इलाही इल अल्लाह
और वही बात गीता पांच हजार से कह रहा है -- अक्षरं ब्रह्म परमं ।



आदि गुरु श्री नानकजी जी साहिब हम सब को अपनें गुरु से मिलवाना चाहते हैं जो परम सत्य है , जो
टाइम स्पेस का नाभि केंद्र है , जो सब के ह्रदय में है और जो संसार में बिभिन्न रूपों में विद्यमान है ।
जपजी साहिब का मूल मंत्र वह मार्ग है जो संसार से एक ओंकार में पहुंचाता है लेकीन
इसके साथ इमानदारी से रहना चाहिए ।

जपजी साबिब में वह ऊर्जा है जो तन , मन एवं बुद्धि में परम प्रीति को प्रवाहित करके कहती है ----
अब देख की ..... कहाँ एक ओंकार नहीं है ?

=== एक ओंकार सत नाम =======

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