Friday, April 16, 2010

नानक वाणी - 2

एक , अनंत रूपों में ...........

आप इन बातों पर कुछ समय सोंचें -------

[क] श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के अन्दर लगभग 1430 पृष्ठों में क्या बतानें का प्रयत्न किया गया है ?
[ख] श्रीमदभगवद्गीता में प्रभु श्री कृष्ण अपनें 556 श्लोकों के माध्यम से अर्जुन को क्या बताना चाहते हैं ?
[ग] आइन्स्टाइन अपनें 900 शोध पत्रों एवं 45000 शोध करनें लायक शोध अप्रकाशीत पत्रों के माध्यम से क्या बताना चाहते थे ?
[घ] गुरुवर रविन्द्र नाथ टैगोर अपनें 6000 से भी अधिक कबिताओं के माध्याम से क्या ब्यक्त करना चाह रहे थे ?
[च] आदि गुरु नानकजी साहिब , कबीरजी साहिब , परम हंस रामकृष्ण जी जैसे परम भक्त हम लोगों
के अन्दर कौन सी ऊर्जा भरना चाहते थे , जिसके लिए ये लोग अपना पूरा जीवन लगा दिए लेकीन वह परिणाम न मिल पाया जो मिलना चाहिए था ।

उपनिषद् कहते हैं - वह एक था लेकीन स्वतः अनेक में बिभक्त हो गया ।
ऋग्वेद कहता है - वह स्वयं गतिमान हो उठा और फल स्वरुप ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ ।
गीता कहता है - जब कोई ब्रह्माण्ड की सभी सूचनाओं को ब्रह्म से ब्रह्म में देखनें लगता है तब वह प्रभु से
परिपूर्ण होता है ।
सत गुरुओं की भाषाएँ अगल - अगल हो सकती हैं लेकीन उनकी बातों में एक ही रस बहता है
पूरा ब्रह्माण्ड उसका ही फैलाव है , जो हैं , वे उसकी ही ओर इशारा करते हैं , लेकीन इन इशाराओं की ओर
देखता कौन है ?
प्रकृति में अपनें हर पल को समझना ही प्रभु मय बना सकता है ,
अतः वक़्त को हाँथ से जानें न दें ।

===== एक ओंकार सत नाम ========

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