Thursday, April 29, 2010

जपजी साहिब - 10



सुणिसतु संतोखु गिआनु ....
सुणिए लागै सहजि धिआनु ....
नानक भगता सदा विगासु .....
सुणिए दुःख पाप का नासु ॥



आदि गुरु श्री नानकजी साहिब जपजी में कह रहे हैं की सुननें से ------

सत संतोष एवं ज्ञान मिलता है ...
सहज में ध्यान लगता है ...
भक्तों को आनंद मिलता है ....
और दुःख - पाप का अंत होता है ॥



गुरु के पास संबाद के लिए नहीं शांत होनें के लिए जाना होता है । शांत होनें का अर्थ है - भाव रहित होना और भाव रहित ब्यक्ति द्रष्टा / साक्षी होता है ... देखिये गीता - 14.19, 14.23 श्लोकों को ।

बुद्ध एवं महाबीर के जबानें तक लोग श्रोतापन को प्राप्त होते रहे हैं लेकीन आज लोग ह्रदय केन्द्रित नहीं हैं , लोगों का केंद्र है उनकी बुद्धि । बुद्धि केन्द्रित ब्यक्ति संदेह में जीता है , कभी शांत नहीं हो सकता और उसके माथे
का पसीना कभी सूखता नहीं ।
बुद्धि केन्द्रित ब्यक्ति को सोच दिन में जगनें नहीं देती और
रातमें सपनें सोनें नहीं देते ।
आप जपजी के माध्यम से अपनें में श्रोतापन को खोज सकते हैं और जिस दिन आपमें श्रोता पैदा होगा ,वह दिन आप के लिए प्रभु का प्रसाद के रूप में होगा ।



===== एक ओंकार सत नाम =======

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