मूल मंत्र आखिरी सोपान .... नानक हो सी भी सच
आदि गुरु श्री नानकजी साहिब परा भक्त थे , परा भक्त वह है जो अपना हर पल प्रभु में गुजारता है और संसार की हर वस्तु में उसे प्रभु ही प्रभु दीखते हैं लेकीन ऐसे भक्त सदियों बात अवतरित होते हैं ।
आदि गुरु श्री नानकजी की बात को सुनिए - कहते हैं ... नानक वह परम सत्य रहेगा भी , यह है परा भक्त की पहचान , जिसकी बुद्धि पूर्ण रूप से स्थीर होती है , जहां संदेह की कोई गुंजाइश होती ही नहीं ।
गीता श्लोक 9.23 - 9.25 में परम प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं -- सकाम भक्ति तक जो सीमित रह गया , वह अज्ञानी है और जो सकाम भक्ति से निष्काम भक्ति में पहुँच गया , उसके लिए मुक्ति - द्वार कोई दूर नहीं ।
आदि गुरु श्री नानकजी साहिब अपनें साधारण शब्दों के माध्यम से यही बात जप - मार्ग से दिखा रहे हैं ।
नानकजी साहिब स्वयं से कह रहे हैं - नानक हो सी भी सच अर्थात वह नानक जो बोल रहा है , अलग है और सुननें वाला नानक अलग है । बोलनें वाला नानक देह में नहीं है , परा [ चेतना ] भाव बोल रहा है जो देह रहित है , जो निर्विकार है । देह तो कभी निर्विकार
हो नहीं सकती और चेतना कभी सविकार हो नहीं सकती ।
नानकजी साहिब कबी न थे , एक सिद्ध योगी थे जो स्वयं बोलते हैं और स्वयं सुनते हैं । एक सिद्ध योगी अपनें में पूर्ण होता है जिसको अज्ञान का पता होता है , जिसको असत का पता होता , जिसको ज्ञान होता है और जो
सत में रहता है ।
अब आप गीता के श्लोक - 2.16, 18.40, 7.12 - 7.13 को एक साथ देखें -----
सत बिना असत हो नहीं सकता , सत भावों में हो नही सकता , भाव गुणों से होते हैं , गुण प्रभु से दूर रखते हैं ,प्रभु से गुण हैं , प्रभु से गुणों के भाव हैं लेकीन प्रभु गुनातीत एवं भावातीत है ।
अब आप सोचिये -----
सकाम भक्ति बिना निष्काम भक्ति में प्रवेश कैसे संभव है ?
भोग बिना योग में प्रवेश करना कैसे संभव है ?
असत के बिना सत का होना कैसे संभव है ? अर्थात -----
सकाम , सविकार , भोग , पाप , शब्द , नाम , मूर्ती , पूजा , जप , तप आदि सभी माध्यम हैं जिनकी समझ ही आगे की राह पर ले जाती है जो राह आदि गुरु नानकजी साहिब जपजी के मूल मंत्र में
बता रहे हैं ।
==== एक ओंकार सत नाम ======
Monday, April 5, 2010
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