हुकमी होवनि आकार
हुकमी होवनि जीव
जपजी साहिब के माध्यम से आदि गुरु जी कहरहे हैं --------
उसकी कृपा से जीवों का निर्माण हुआ है और उसकी कृपा से जीवों के अनंत
स्वरुप देखनें को हैं ।
आदि गुरूजी साहिब के छोटे - छोटे सूत्रों को हम गीता में खोजनें का प्रयाश कर रहे हैं अतः यहाँ जपजी - 2 के सन्दर्भ में हमें गीता के निम्न श्लोकों को देखना चाहिए ------
7.4 - 7.6, 13.5 - 13.6, 14.3 - 14.4, 15.6, 7.12 - 7.15, 8.16 - 8.18
गीता सृष्टि के विज्ञान को ऊपर के श्लोकों के माध्यम से कुछ इस प्रकार से देता है ----
प्रभु से प्रभु में तीन गुणों से परिपूर्ण दो प्रकृतियों के नौ तत्वों एवं जीवात्मा के योग से
जीव का निर्माण होता है ।
दो प्रकृतियों में हैं ; अपरा एवं परा । अपरा में आठ तत्त्व हैं - पञ्च महाभूत , मन , बुद्धि , अहंकार औरपरा प्रकृ ति का एक तत्त्व है - चेतना । गीता कह रहा है - चार युगों की अवधीसे हजार गुना अधिक अवधी का ब्रह्मा का एक दिन होता है । ब्रह्मा की रात एवं दिन बराबर अवधी के होते हैं । ब्रह्मा की रात में जीव नहीं होते और दिन के समय में जीव होते हैं । ब्रह्मा की रात जब आती है तब सभी जीव अलग - अलग उर्जाओं में बदल कर
ब्रह्मा के सूक्ष्म रूप में समा जाते हैं लेकीन जब दिन का आगमन होता है तब पुनः सभी जीव अपनें - अपनें पूर्व स्वरूपों को प्राप्त कर लेते हैं । प्रकृति में प्रकृति से यह आवागमन का चक्र चलता रहता है जिसमें जीवों का जन्म , जीवन , मृत्यु एवं पुनः जन्म का चक्र होता है ।
गीता - तत्त्व विज्ञान जो सृष्टि से सम्बंधित है उसके सम्बन्ध में आदि गुरूजी साहिब मात्र इतना कह कर चुप हो जाते हैं -----
हुकमी होवनि आकार ....
हुकमी होवनि जीव ......
अब आप गुरूजी की इस बात में चाहे तो सांख्य - योग को खोजें या न्याय को खोजें , यह खोज मात्र बुद्धि स्तर पर होगी जिस से मिलेगा कुछ नहीं , खोज की चाह और बढ़ जायेगी और जब बुद्धि स्थिर
होगी तब जो दिखेगा , वह होगा .....
हुकमी होवनि आकार ...
हुकमी होवनि जीव ....
==== एक ओंकार सत नाम =====
Wednesday, April 21, 2010
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