Sunday, April 11, 2010

श्री गुरु ग्रन्थ साहिबजी एवं गीता - 27

जपजी साहिब का मूल मंत्र बैराग्य की ऊर्जा भरता है

एक ओंकार सत नाम , करता पुरुष , अकाल मूरत , अजुनी इन शब्दों के भावों में कौन बहता है ?
जो इन शब्दों के भावों में बहनें लगता है , उसका दूसरा नाम है बैरागी । बैरागी वह है जिसको मिलता है ,
सत गुरु , सत गुरु से उसे प्रसाद रूप में मिलता है , परम आनंद ।
आइये अब कुछ बातें गीता से देखते हैं ---------
[क] मोह के साथ वैराग्य संभव नहीं - गीता - 2.52
[ख] बैराग्य बिना संसार का बोध नहीं - गीता - 15.2
[ग] कामना , मोह अज्ञान की जननी हैं - गीता - 7.20, 18.72, 18.73
[घ] वासना - राग [ राजस गुण ] प्रभु की ओर रुख करनें नहीं देते - गीता - 6.27

गीता में अर्जुन का छठवां प्रश्न है -- मन की चंचलता को कैसे नियंत्रित करें ? प्रभु कहते हैं .......[ गीता - 6.26, 6.34 ] मन शांत होता है - बैराग्य एवं अभ्यास से । प्रभु कहते हैं , तेरा मन जहां - जहां रुकता हो उसे वहाँ - वहाँ से उठाकर मेरे ऊपर केन्द्रित करो , ऐसा अभ्यास करनें से मन शांत होगा ,
शांत मन वाला बैरागी होता है ।

मूल मंत्र का जप करना क्या है , यह अभ्यास है जैसी बात प्रभु सूत्र - 6.26 में कहरहे हैं ।
बैरागी वह है - जो गुणों के तत्वों के सम्मोहन में नहीं फसता , हर पल उसका प्रभु सुमिरन में गुजरता है ।

===== एक ओंकार सत नाम ======

No comments:

Post a Comment

Followers