Friday, April 9, 2010

श्री ग्रन्थ साहिबजी एवं गीता - 26

जपजी मूलमंत्र बेदांत का द्वार है

एक ओंकार , सत नाम का जप कौन करेगा ? एक ओंकार वह है जो इन्द्रियों की पकड़ से परे है , मन की
सोच के परे है और बुद्धि के तर्क - बितर्क के परे है , ऐसे में एक ओंकार का जप करना कितना कठीन होगा ?
बिना डोर क्या पतंग उड़ाई जा सकती है ? बिना रस्सी क्या कुएं से पानी निकाला जा सकता है ? जिसका कोई पता नहीं , कोई पहचान नहीं उसे याद करना कितना कठीन काम है , आप समझ सकते हैं ।

आदि गुरु कहते है - बश उसके नाम को जपो , बात सुननें में तो अति आसान दिखती है लेकीन है कितनी गंभीर , इस बात को आप समझें ? सुमीरण वह करता है ------
** जिसको राग में बैराग्य दीखता है .... गीता - 4.10
** भोग को समझ कर योग की ओर चलना चाहता है .... गीता - 7.11
** जो सम भाव वाला हो .... गीता - 2.56 - 2.57
** जो जन्म , जीवन एवं मृत्यु में सम भाव रहता हो .... गीता - 2.11
** जिसके पीठ के पीछे भोग हो और आँखों में प्रभु बसा हो .... गीता - 2.69

गुरु साहिब कहते हैं - तुम जप करना प्रारम्भ तो करो , इसको अपनें जीवन से जोड़ो तो सही , धीरे - धीरे
अभ्यास से तुम वहाँ पहुँच जाओगे जहां ------
[क] भोग की दौड़ न होगी ----
[ख] चिंता का आना बंद हो जाएगा ----
[ग] तन , मन एवं बुद्धि में होश होगा ---
[घ] पुरे ब्रहांड में एक दिखेगा और वह होगा .....
एक ओंकार ।
एक ओंकार की धड़कन सुननें के लिए आदि गुरु जैसा ह्रदय चाहिए और यह संभव है तब ----
जब शरीर , मन एवं बुद्धि में गुरु की उर्जा का संचार हो रहा हो , गुरु की ऊर्जा का श्रोत है -----
जपजी का मूलमंत्र ।

===== एक ओंकार सत नाम ========

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