Tuesday, April 27, 2010
जपजी साहिब - 8
सुणिए सिध पीर सुरि नाथ ......
सुणिए धरति धवल आकास .....
सुणिए दीप लोअ पाताल .........
सुणिए पोहि न सकै कालु .....
नानक भगता सदा विगासु .....
सुणिए दुःख पाप का नासु ॥
आदि गुरु श्री नानकजी साहिब जपजी साहिब के माध्यम से कह रहे हैं -------
सुननें से .......
सिद्ध , पीर देवता और नाथ हैं .....
धरती धवल आकाश हैं .....
द्वीप , लोक और पातळ हैं ....
मृत्यु पास नही आता ....
भक्त आनंदित होते हैं .....
पाप - दुःख का अंत होता है ॥
आदि गुरु नानकजी साहिब सुननें की कला के बारे में बता रहे हैं जिसको श्रोतापन कहते हैं । ईशापूर्व 500 वर्ष - बुद्ध एवं महाबीर के समय तक एक नहीं अनेक लोग बुद्धत्व को प्राप्त हुए लेकीन आज की स्थिति अलग है , आज लोग ह्रदय पर केन्द्रित नहीं हैं , लोगों का केंद्र उनकी अपनी - अपनी बुद्धि है ।
आज का युग विज्ञान का युग है , विज्ञान उसका नाम है जो संदेह से जन्मा हो और श्रोतापन आता है , श्रद्धा से प्रीति से और गुण रहित प्यार से ।
भक्ति की माँ है - विश्वास और विज्ञान की माँ है - संदेह ।
विश्वास और संदेह दोनों की दिशाएँ एक दुसरे के बिपरीत हैं अर्थात भक्ति से विज्ञान नहीं निकल सकता और विज्ञान में भक्ति की कोई गुंजाइश नहीं है । भक्ति का केंद्र है - ह्रदय और संदेह [ विज्ञान ] का केंद्र है - बुद्धि ।
गीता कहता है [ गीता सूत्र - 7.20, 18.72 - 18.73 ] -- ----
कामना और मोह अज्ञान की जननी हैं और कामना एवं मोह की यात्रा संदेह एवं भय की यात्रा होती है ।
भय के साथ भगवान् की शरण पाना असंभव है और कामना प्रभु के द्वार को बंद करती है ।
आदि गुरु एक सिद्ध भक्त हैं , ऐसा भक्त ह्रदय पर केन्द्रित होता है , उसकी बुद्धि परम पर टिकी होती है ,
उसकी भाषा हाँ की भाषा होती है , वह ना को नहीं समझता ।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को प्रभु के फैलाव के रूप में देखनें वाला , परा भक्त आदि गुरु नानकजी साहिब जैसा होता है ।
===== एक ओंकार सत नाम =====
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